और हर एक दीप, अंतिम रूप में केवल धुंआ है
मत करो अपमान, आंखों में घुमड़ते अश्क का
जिन्दगी कहते जिसे कुछ आंसुओं का तर्जुमा है।
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सुख की दीवाली तो तम से ही सदा मनती है
कीचड़ों से ही कमल सारी जमीं चुनती है
पुण्य का नाम ही केवल न किताबों में लिखो
कुछ गुनाहों से भी दुनिया हसीन बनती है।
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सपने गये सपनों के खरीददार गये
झंकार गयी, गीत गये, तार गये
तुम उठके जो महफिल, से चले आधी रात
रोते हुए सब तारे समझदार गये।
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रूख चलती हवाओं का बदल जाता है
कन्दील-सा माहौल में जल जाता है
शरमा के झुका लेते हैं परबत आंखें
पल्लू जो तेरा सिर से फिसल जाता है।
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कफन बढ़ा तो किसलिए नजर तू डबडबा गयी
सिंगार क्यों सहम गया, बहार क्यों लजा गयी,
न जन्म कुछ, न मृत्यु कुछ, बस इतनी सिर्फ बात है
किसी की आंख खुल गयी, किसी को नींद आ गयी।
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हर स्वप्न है रो-रो के सुलाने के लिए
हर याद है घुल-घुल के भुलाने के लिए
जाती हुई डोली को न आवाज लगा
इस गांव में सब आये हैं जाने के लिए।
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जीवन ने कहा, बहता हुआ जल हूं मैं
तो आ के मरण बोला, मरूस्थल हूं मैं
पर आंख से जब प्यार के आंसू दो गिरे
कण-कण यह पुकार उट्ठा कि बादल हूं मैं।
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उन गोरे कपोलों पै यह तिल की शोभा
भौंरा कोई सोया हो कंवल पर जैसे
मेहंदी से रची उफ् वह हथेली सुन्दर
अंगार तिरा दे कोई जल पर जैसे।
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हर नजर साधू नहीं है, हर बशर गांधी नहीं है
वस्त्र हर रेशम नहीं है, सूत हर खादी नहीं है
नीति को लेकर कसौटी मत कसो इंसान को
आदमी है आदमी, सोना नहीं, चांदी नहीं है।
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सपने हैं घरौंदे कि बिखर जाते हैं
मौसम हैं परिन्दे कि न बंध पाते हैं
तू किसको बुलाता है खड़ा पानी में
गुजरे हुए दिन लौट के कब आते हैं।
संकलन-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com
मुक्तक/शेरों-शायरी के और संग्रह
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